पुत्र के मृत्यु होने पर एक महाराजा ने कर दिया था शीतला माता को शहर से निष्कासित

 पूरे देश में होली के सात दिन पश्चात सप्तमी का शीतला माता का पूजन किया जाता है, लेकिन जोधपुर में यह पूजा अष्टमी को होती है। इसका कारण सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह सत्य है। जोधपुर में सदियों से दैवीय पूजन विधि विधान की अपेक्षा एक राजा के आदेशानुसार अब तक होता आ रहा है। माता निकलने की वजह से पुत्र की मृत्यु होने पर जोधपुर के महाराजा विजयसिंह ने शीतला माता को जोधपुर शहर से निष्कासित कर दिया। इसके बाद से अब तक जोधपुर में शीतला माता की पूजा अष्टमी को की जाती है।  


 


महाराजा विजयसिंह वर्ष 1752 में अपने पिता महाराजा बखतसिंह के निधन होने पर जोधपुर के महाराजा बने। अगले वर्ष महाराजा रामसिंह ने उनसे सत्ता हथिया ली। इसके बाद में उनका निधन होने पर 1772 में एक बार फिर जोधपुर के महाराजा बने। इसके कुछ वर्ष पश्चात माता(चेचक) निकलने के कारण शीतला सप्तमी को उनके बड़े पुत्र का निधन हो गया। माता के प्रकोप से पुत्र की मौत से दुखी महाराजा ने शीतला माता के शहर से निष्कासन का आदेश जारी कर दिया। 


इस पर जूनी मंडी स्थित शीतला माता मंदिर से शीतला माता की प्रतिमा को उठाकर कागा की पहाड़ियों में पहुंचा दिया गया। जोधपुर में कागा क्षेत्र श्मशान स्थल था। इसके निकट ही एक बाग भी था। श्मशान के निकट पहाड़ी में माता की प्रतिमा को रखवा दिया गया। महाराजा का गुस्सा इससे भी शांत नहीं हुआ। उन्होंने कागा की तरफ खुलने वाले नगर के द्वार नागौर गेट को लूण(नमक) से चुणवा दिया। कई लोग आज भी बोलचाल में इस द्वार को नागौर गेट के बजाय लूणिया दरवाजा कहते है। 


समय के साथ महाराजा का गुस्सा शांत अवश्य हुआ, लेकिन शीतला माता का निष्कासन रद्द नहीं हो पाया।


कई बरस पश्चात कागा की पहाड़ियों में शीतला माता की प्रतिमा के इर्द-गिर्द मंदिर का निर्माण कराया गया। तब से लेकर अब तक शहर के लोग सप्तमी के बजाय अष्टमी को शीतला माता की पूजा करते है।